Wednesday, March 24, 2021

असम का ऐतिहासिक सेना नायक : लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan)

असम का ऐतिहासिक सेना नायक : लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan)


1526 में भारत आए मुगलों (Mughal Empire) ने करीब-करीब पूरे भारत पर एकछत्र राज किया। लेकिन भारत के कुछ इलाके ऐसे भी थे, जहां मुगल बार-बार कोशिश करने के बावजूद अपना राज स्थापित नहीं कर सके। ऐसा ही एक राज्य है असम, जिसमें सैंकड़ों सालों तक अहोम वंश (Ahom Kingdom) का शासन रहा। मुगलों ने इस दौरान कई बार कोशिश की, लेकिन लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) जैसे योद्धा के चलते मुगल, असम पर कभी भी कब्जा नहीं कर सके। तो आइए जानते हैं असम के इस महान योद्धा के बारे में, जिसने शक्तिशाली मुगलों से टक्कर लेने का फैसला किया और ना सिर्फ टक्कर ली बल्कि मुगलों को हराया भी।


अहोम राजवंश(Ahom Kingdom)

Lachit Borphukan के बारे में जानने से पहले हमें अहोम राजवंश के बारे में जानना जरुरी है। बता दें कि अहोम राजवंश ने असम (Assam) पर करीब 600 सालों तक राज किया। इस राजवंश की स्थापना 1228 ईस्वी में म्यांमार के एक राजा ने की थी। हालांकि असम आकर इस राजवंश ने हिंदू धर्म अपना लिया था। मुगलों और अहोम राजवंश के बीच करीब 70 सालों तक रुक-रुककर लड़ाई चलती रही, लेकिन मुगल इस राजवंश को कभी नहीं जीत सके। जैसा कि सभी जानते हैं कि मुगलों की नीति हमेशा विस्तारवाद की रही। इसी नीति का नतीजा था कि उन्होंने लगभग पूरे भारत पर राज किया। मुगलों और अहोम राजवंश की बीच लड़ाई भी इसी विस्तारवादी नीति के कारण हुई। 1218 से शुरु होकर अहोम राजवंश का असम पर राज अंग्रेजों के जमाने तक मतलब 1826 ईस्वी तक चला।

लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan)

हमारे इतिहास में कई ऐसे योद्धा हुए हैं, जिन्होंने अपनी वीरता से मुगलो और अंग्रेजों से खूब टक्कर ली। लेकिन दुख की बात रही कि हमारे इतिहासकारों ने उन्हें भुला दिया और ऐसे योद्धाओं की कहानी देश की आम जनता तक नहीं पहुंच सकी। ऐसे ही योद्धाओं में शुमार किया जाता है लाचित बोरफुकन का। बता दें कि लाचित बोरफुकन असम के अहोम राजवंश के सेनापति थे। यहां साफ कर दें कि बोरफुकन, लाचित का नाम नहीं बल्कि उनकी पदवी थी।

लाचित का जन्म साल 24 नवंबर1622 में अहोम राजवंश के एक बड़े अधिकारी के घर हुआ। बचपन से ही काफी बहादुर और समझदार लाचित जल्द ही अहोम राजवंश की सेना के सेनापति यानि कि बोरफुकन बन गए। लाचित ने सेना का सेनापति रहते हुए अहोम सेना को काफी ताकतवर बनाया, जिसका फायदा उन्हें मुगलों के खिलाफ लड़ाई में मिला।

इतिहासकारों का कहना है कि 1662 में मुगल सेना ने गुवाहटी पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद अगले 5 सालों तक गुवाहटी मुगलों के पास रहा। लेकिन 1667 मे गुवाहटी पर एक बार फिर से अहोम राजाओं का कब्जा हो गया। इस लड़ाई के नायक रहे लाचित बोरफुकन, जिन्होंने बड़ी ही चतुराई और वीरता से मुगलों को गुवाहटी से खदेड़ दिया। इसके बाद Lachit Borphukan के नेतृत्व में ही ऐतिहासिक सरायघाट की लड़ाई लड़ी गई, जिसमें मुगलों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।

Lachit Borphukan

सरायघाट की लड़ाई

1667 में अहोम राजाओं से मिली करारी हार के बाद मुगल बुरी तरह से तिलमिला गए। जिसके कुछ समय बाद ही मुगल शासक औरंगजेब ने राजपूत राजा राम सिंह के नेतृत्व में विशाल मुगल सेना को अहोम राजवंश पर जीत के लिए रवाना कर दिया। 1669-70 में मुगल सेना और अहोम राजाओं के बीच कई लड़ाईयां लड़ी गईं, जिनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। इसके बाद 1671 में सरायघाट इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी में अहोम सेना और मुगलों के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई। यह लड़ाई इतिहास की अहम लड़ाईयों में गिनी जाती है, जिसने पानी में लड़ाई की तकनीक को नए आयाम दिए।

सरायघाट की लड़ाई में मुगल सेना बड़े बड़े जहाजों पर सवार होकर असम में घुसने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अहोम सेना ने संख्या में कम होते हुए भी तकनीक और चतुराई के दम पर शक्तिशाली मुगल सेना को हरा दिया। कहा जाता है कि सरायघाट की लड़ाई से पहले अहोम सेना के सेनापति लाचित बोरफुकन बीमार हो गए और युद्ध में हिस्सा नहीं ले पाए। जैसे ही युद्ध शुरु हुआ अहोम सेना मुगल सेना से हारने लगी। इसकी सूचना मिलते ही लाचित बीमार होते हुए भी लड़ाई में शामिल हुए और अपनी कमाल की नेतृत्व क्षमता के दम पर सरायघाट की लड़ाई में करीब 4000 मुगल सैनिकों को मार गिराया और उनके कई जहाजों को नष्ट कर दिया। सरायघाट की लड़ाई में करारी हार के बाद मुगल पीछे हट गए और फिर कभी भी असम पर आक्रमण के लिए नहीं लौटे।


सरायघाट की लड़ाई के कुछ समय बाद ही लाचित की बीमारी से मौत हो गई, लेकिन यह वीर योद्धा इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया। असम में आज भी लाचित बोरफुकन का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है और हर साल लाचित के जन्मदिवस 24 नवंबर पर असम में लाचित दिवस मनाया जाता है।



Note:-

News Important

चर्चा में क्यों?

  • 15 अगस्त, 2022 को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के 75 सप्ताह पूर्व 12 मार्च से “आज़ादी का अमृत महोत्सव” का आयोजन किया जा रहा है | ज्ञातव्य है कि 12 मार्च 1930 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी।
  • प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने “आज़ादी का अमृत महोत्सव” कार्यक्रम को आगाज करने के दौरान पूर्वोत्तर में मुगल सेना का विजय रथ रोकने वाले अहोम साम्राज्य (Ahom Kingdom) के कमांडर “लाचित बोरफुकन” के नाम का जिक्र भी किया |

लाचित बोरफुकन के बारे में:

  • लचित बोरफुकन का मूल नाम 'चाउ लासित फुकनलुंग' था | बोरफुकन (सेनापति) उनकी सैन्य उपाधि थी |
  • ये 17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा थे। उनकी वीरता के कारण ही उन्हें पूर्वोत्तर भारत का वीर 'शिवाजी' कहा जाता है।
  • लाचित का जन्म साल 24 नवंबर 1622 में अहोम राजवंश के एक बड़े अधिकारी के घर हुआ।
  • बचपन से ही काफी बहादुर और समझदार होने का कारण लाचित जल्द ही अहोम राजवंश की सेना के सेनापति यानि बोरफुकन (सेनापति) बन गए।
  • लचित बोरफुकन को ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे मुगलों के विरुद्ध 1671 में सराईघाट की निर्णायक जंग के लिए जाना जाता है जिसमें इन्होने शक्तिशाली मुगल सेना को हराया था |
  • उस वक्त मुगल शासक औरंगजेब , पूरे भारत पर साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इस उद्देश्य से उसने राम सिंह के नेतृत्व में विशाल मुगल सेना को कामरूप पर अधिकार करने के लिए भेजा।
  • आहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित ने बेहद कम सैनिकों और संसाधन के साथ युद्ध कौशल का ऐसा प्रदर्शन किया कि मुगलों का उत्तर-पूर्व में राज करने की महत्वाकांक्षा पूर्ण न हो सकी |
  • सराईघाट की विजय के लगभग एक वर्ष बाद अर्थात वर्ष 1672 में प्राकृतिक कारणों से लाचित बोरफुकन की मृत्यु हो गई।
  • लाचित बोरफुकन का कोई चित्र उपलब्ध नहीं है, लेकिन एक पुराना इतिवृत्त उनका वर्णन इस प्रकार करता है, "उनका मुख चौड़ा है तथा पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह दिखाई देता है और कोई भी उनके चेहरे की ओर आँख उठाकर नहीं देख सकता" |
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाचित बोरफुकन को भारत के महान बेटों में से एक बताया |
  • लाचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय का स्मरण करने के लिए संपूर्ण असम में प्रति वर्ष 24 नवम्बर को 'लाचित दिवस' मनाया जाता है ।
  • सराईघाट की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध इस युद्ध में लाचित ने शौर्य का ऐसा प्रदर्शन किया कि नैशनल डिफेंस अकैडमी (NDA) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को उनके नाम पर पड़े लाचित मैडल से सम्मानित किया जाता है।

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