ब्रिक्स (BRICS)
परिचय
ब्रिक्स पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से बना समूह है। गोल्डमैन सैक्स द्वारा वर्ष 2001 में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के इन पांच उभरते देशों के प्रस्तावित इस समूह को अधिकाधिक वैश्विक शक्ति परिवर्तन के केंद्र के रूप में देखा जा रहा है. 2008-9 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के समय बने इस समूह का मुख्य लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय मामलों पर सहयोग, नीति समन्वयन और राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देना है। लेकिन अपनी स्थापना के बाद से ब्रिक्स ने अपनी गतिविधियों का, विशेष रूप से समूह की नियमित बैठकें आयोजित करने, अंतरराष्ट्रीय संगठन में समन्वयक की भूमिका निभाने और अपने सदस्यों के बीच बहु-क्षेत्रीय सहयोग के लिए एजेंडा के निर्माण लिहाज़ से, विस्तार किया है। समूह का गठन 2009 में हुए पहले राष्ट्राध्यक्ष स्तरीय शिखर सम्मेलन के साथ हुआ था। इसके बाद हर साल वैश्विक महत्व के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए समूह की बैठक होती रही।
इस शोध पत्र में ब्रिक्स द्वारा 25-27 जुलाई, 2018 को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में प्रस्तावित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के साथ अपने दसवें वर्ष पूरे करने की पृष्ठभूमि में ब्रिक्स की स्थापना के बाद से इसके सामाजिक-आर्थिक सहयोग से जुड़े प्रमुख क्षेत्रों पर विचार करने का प्रयास किया गया है। इस प्रक्रिया में शिखर सम्मेलन स्तर की घोषणाओं का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है, ताकि प्रतिबद्धताओं और महत्वपूर्ण मुद्दों के कार्यान्वयन पर हुई प्रगति का जायज़ा लिया जा सके।
उत्पत्ति और महत्ता: ब्रिक से ब्रिक्स तक
ब्राजील, रूस, भारत और चीन पर आधारित संक्षिप्ति BRIC(S) का प्रस्ताव वर्ष 2001 में गोल्डमैन सैक्स के जिम ओ 'नील द्वारा दिया गया था, जिन्होंने अनुमान लगाया था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएँ व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बन जाएंगी और और अगले कोई 50 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होंगी। हालांकि समूह की पहली बैठक जी8 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान सेंट पीटर्सबर्ग में हुई रूस, भारत और चीन के नेताओं की बैठक के बाद हुई। समूह का औपचारिक गठन 2006 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान हुई BRIC विदेश मंत्रियों की पहली बैठक में हुआ। इसके बाद जून 2009 में येकातेरिनबर्ग (रूस) में पहला BRIC शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। दक्षिण अफ्रीका को शामिल कर इस समूह का विस्तार किया गया। तदनुसार दक्षिण अफ्रीका ने सान्या (चीन) में अप्रैल 2011 में हुए तीसरे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
ब्रिक्स के सदस्य
ब्रिक्स की इन पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का सामूहिक तौर पर विश्व की आबादी में 40% से अधिक, विश्व के जीडीपी में 30% से अधिक और वैश्विक व्यापार में 17% का योगदान है। समूह की शुरुआत मूलतया आपसी हितों के आर्थिक मुद्दों पर चर्चा हेतु मंच के तौर हुई। लेकिन महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को शामिल कर ब्रिक्स के एजेंडे में काफी हद तक विस्तार किया गया है। ब्रिक्स सहयोग दो स्तंभों पर आधारित है - नेताओं और वित्त, व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान और टेक्नोलॉजी, शिक्षा, कृषि, संचार, श्रम, आदि से जुड़े मंत्रियों की बैठकों के माध्यम से आपसी हित के मुद्दों पर परामर्श और कार्य समूहों / वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकों के माध्यम से कई क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग करना।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के आँकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 के बीच वैश्विक निर्यात में ब्रिक्स की भागीदारी दोगुना होकर 8% से 16% हो गई। इन वर्षों में इन देशों के कुल निर्यात में 500% से अधिक वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि में कुल वैश्विक निर्यात 195% बढ़ा है। 2002 और 2012 के बीच ब्रिक्स देशों का आपसी व्यापार 27 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 276 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया, जोकि 922% की वृद्धि है, जबकि 2010 से 2012 के बीच ब्रिक्स का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 29% की दर से बढ़कर 4.7 खरब अमेरिकी डॉलर से 6.1 खरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: सामाजिक-आर्थिक सहयोग का विश्लेषण
अब तक नौ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। 16 जून 2009 को रूस के येकातेरिनबर्ग में पहला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन; 16 अप्रैल 2010 को ब्राज़ीलिया, ब्राजील में दूसरा; 14 अप्रैल, 2011 को सान्या, चीन में तीसरा; 29 मार्च, 2012 को नई दिल्ली, भारत में चौथा; 26-27 अक्टूबर, 2013 को डरबन, दक्षिण अफ्रीका में पांचवां; फोर्टालेज़ा, ब्राजील में छठा, 14-16 जुलाई, 2014; उफा में सातवां, 8-9 जुलाई, 2015 को रूस में हुआ; आठवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 5-6 अक्टूबर, 2016 को भारत की अध्यक्षता के दौरान आयोजित किया गया था; और नौवां शिखर सम्मेलन चीन के शियामेन में 3-5 सितंबर, 2017 को आयोजित किया गया था।
इन वर्षों में ब्रिक्स सहयोग का बैठकों, हितधारकों की संख्या और एजेंडा के संदर्भ में विस्तार हुआ है। अब इसमें 100 से अधिक क्षेत्रीय बैठकों का वार्षिक कार्यक्रम शामिल है, जिसमें तीन स्तरों की बातचीत के तहत देशों की सरकारों की औपचारिक राजनयिक बातचीत, सरकार से संबद्ध संस्थानों के माध्यम से बातचीत उदाहरणतया सरकारी उद्यमों और व्यापार परिषदों और नागरिक समाज और "लोगों -से-लोगों" की बातचीत। एजेंडे के संदर्भ में यह जुड़ाव अब बहु-क्षेत्रीय बन चुका है।
निम्न तालिका 1 में विभिन्न शिखर घोषणाओं में रेखांकित किये गए स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृषि और आर्थिक और वित्तीय सहयोग में ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों को इंगित किया गया है। इन सभी क्षेत्रों को 2015 में अंगीकृत ब्रिक्स आर्थिक भागीदारी रणनीति के दायरे में शामिल किया गया है। 2009 में इसकी पहली शिखर बैठक के बाद से इन सभी क्षेत्रों में हुई प्रगति सुस्त रही है। न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA) की स्थापना में एकमात्र ठोस प्रगति हुई देखी जा सकती है। कृषि के मुद्दे पर ब्रिक्स कृषि अनुसंधान मंच का समन्वयन केंद्र अप्रैल, 2017 में स्थापित किया गया। नवीनतम घटनाक्रम था NDB अफ्रीका क्षेत्रीय केंद्र (ARC) की अगस्त, 2017 में हुई स्थापना। स्वास्थ्य, शिक्षा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे अन्य मुद्दों पर हुई प्रगति कुछ ख़ास नहीं रही है।
ब्रिक्स के अंदर सहयोग को मज़बूत करने और बढ़ाने के लिए जुलाई 2015 में उफा शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स आर्थिक साझेदारी रणनीति अंगीकृत की गई थी। अब इसमें व्यापार और निवेश, विनिर्माण और खनिज प्रसंस्करण, ऊर्जा, कृषि सहयोग, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार, वित्तीय सहयोग, कनेक्टिविटी, आईसीटी सहयोग और बहुपक्षीय और क्षेत्रीय संगठनों में समन्वय सहित सहयोग के सभी क्षेत्र शामिल हो चुके हैं। इसके अंगीकार किये जाने के बाद से इन तीन वर्षों में ब्रिक्स ने ब्रिक्स साझेदारी के तहत चिन्हित विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर अपने सहयोग को संस्थागत रूप देने का प्रयास किया है। इस दिशा में नियमित रूप से विभिन्न सेमिनारों, कार्यशालाओं और बैठकों का आयोजन किया जाता है।
अपनी शुरुआत से ही ब्रिक्स के नेता वैश्विक शासन को बेहतर बनाकर अधिक न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए समन्वयन करने को प्रतिबद्ध हैं। इन नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय संस्थानों में सुधार करने, विशेष तौर पर इन संस्थानों में विकासशील देशों को अधिक स्थान और प्रतिनिधित्व देने के लिए, वैश्विक अर्थव्यवस्था में हुए बदलाव को प्रतिबिंबित करने के प्रति अपनी कटिबद्धता दोहराई है। इस लक्ष्य के प्राप्ति की दिशा में ब्रिक्स इन वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में शनैः शनैः परिवर्तन लाने में सफल रहा है। ब्रिक्स के संयुक्त प्रयासों से कोटा और शासन पर 2010 का सुधार प्रस्ताव पारित हुआ। इसके बाद आईएमएफ का कोटा दोगुना हो गया, जिसमें से कुल 6% हिस्सेदारी उभरते और विकासशील देशों को दी गई। चीन, रूस, ब्राजील और भारत के की वोटों की संख्या बढ़कर कुल 14.18% तक पहुँच गई।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के व्यापक सुधार के लिए अपनी प्रतिबद्धताएं दोहराई हैं ताकि इसे और अधिक कुशल बनाया जा सके, और साथ ही इसकी प्रणाली में भारत और ब्राजील द्वारा बड़ी भूमिका निभाने से जुड़ी इनकी आकांक्षाओं का समर्थन भी किया। हालाँकि इस समर्थन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के विस्तार के बारे में कोई प्रत्यक्ष वर्णन नहीं है। यह यूएनएससी में सुधार लाने के बारे में रूस और चीन के अड़ियल रवैये का सूचक है। इससे पर्याप्त सुधार की संभावनाएँ झूठी हो जाती हैं क्योंकि UNSC में सुधार के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के दो-तिहाई सदस्यों की सकारात्मक वोट और घरेलू अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है, जिसमें सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य (P5, जिसमें चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस हैं) शामिल हैं, जिन्होंने स्थायी सदस्यता के विस्तार के किसी भी कदम का लगातार विरोध किया है।
इन नेताओं ने महत्वपूर्ण कारक के रूप में जी20 के प्रभुत्व और इसके सभी सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समन्वय और सहयोग के मंच के रूप में मान्यता दी है। जी20 शिखर सम्मेलनों में ब्रिक्स को व्यापक आर्थिक नीतियों को आकार देने वाले प्रभावशाली मंच के रूप में देखा जाता है। इस दिशा में ब्रिक्स अंतर्राष्ट्रीय कराधान नीति को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है, जिसमें आधार के क्षरण और लाभ स्थानांतरण (बीईपीएस), कर सूचना का आदान-प्रदान, विकासशील देशों का कर क्षमता निर्माण और विकास और टैक्स की निश्चितता को बढ़ावा देने वाली कर नीतियां शामिल हैं। इस उद्देश्य के लिए ब्रिक्स राजस्व प्रमुखों की बैठक सहित सदस्यों ने मौजूदा तंत्र के माध्यम से सहयोग और समन्वय को मजबूत करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है। उदाहरण के तौर पर दिसंबर 2016 में भारत द्वारा आयोजित ब्रिक्स राजस्व प्रमुखों की 4थी बैठक में नेता ब्रिक्स कर सहयोग को मज़बूत करने पर सहमत हुए और सभी सदस्य कर प्रशासन के बारे में हुई जी20 की सहमति को लागू करने और विकासशील लोगों को उनकी कराधान क्षमता में सुधार करने पर सहमत हुए. जुलाई 2017 में हेंगजोऊ में ब्रिक्स के टैक्स प्राधिकरणों के प्रमुखों की 5वीं बैठक के दौरान ब्रिक्स कर अधिकारियों के बीच समझौता ज्ञापन (MoC) पर हस्ताक्षर किए गए।
ब्रिक्स नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दोहा वार्ता दौर के प्रभावी समापन के लिए निरंतर प्रयास करने के साथ साथ खुली, समावेशी, निष्पक्ष, पारदर्शी और नियमों पर आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को अपना समर्थन भी दोहराया है। विश्व व्यापार संगठन में ब्रिक्स देशों ने दोहा दौर की वार्ता को प्रभावित करने हेतु जी20 और जी33 जैसे विभिन्न गठबंधनों के भाग के तौर पर सहयोग किया है। बाली और नैरोबी मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में हुए निर्णयों को लागू करने के महत्व के साथ-साथ दोहा विकास एजेंडा (डीडीए) के शेष बचे मुद्दों पर प्राथमिकता आधार पर वार्ता को आगे बढ़ाने पर ज़ियामी घोषणा सहित, इन घोषणाओं में जोर दिया गया है।
शिक्षा के मुद्दे पर BRICS नेटवर्क यूनिवर्सिटी (BRICS-NU), जिसका उद्देश्य पांच देशों में से हरेक से 12 विश्वविद्यालयों को शिक्षा अनुसंधान और नवाचार में शामिल करना है, महत्वपूर्ण पहल है। इसके तहत सहयोग के पांच क्षेत्रों का प्राथमिकताकरण किया गया है। इनमें संचार और आईटी, अर्थशास्त्र, जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन और प्रदूषण और ब्रिक्स अध्ययन शामिल हैं। जहां तक प्रगति की बात है, 1-3 जुलाई, 2017 को झेंग्झौ (चीन) में हुई ब्रिक्स-एनयू के अंतर्राष्ट्रीय शासी बोर्ड (आईजीबी) और अंतर्राष्ट्रीय थीमेटिक समूह (आईटीजीडी) की बैठकों के दौरान ब्रिक्स-एनयू में भागदार देशों ने आईजीबी के विनियमन पर और आईटीजी के विधान पर हस्ताक्षर किए, जिससे ब्रिक्स-एनयू की संरचना पूरी हो गई। इसके अलावा, इन पांच देशों के विश्वविद्यालयों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए 2013 में ब्रिक्स विश्वविद्यालय लीग की परिकल्पना की गई है।
2017 में आयोजित 8वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में नेताओं ने ब्रिक्स विश्वविद्यालय लीग और ब्रिक्स नेटवर्क विश्वविद्यालय को शिक्षा और अनुसंधान सहयोग के संचालन में अपना समर्थन फिर दोहराया। उन्होंने व्यावहारिक सांस्कृतिक सहयोग और ब्रिक्स पुस्तकालय गठबंधन, संग्रहालय गठबंधन, कला संग्रहाल्य गठबंधन और राष्ट्रीय दीर्घाओं की स्थापना के साथ-साथ बच्चों और युवा लोगों के लिए रंगमंच गठबंधन की स्थापना हेतु ब्रिक्स कार्य योजना बनाये जाने का भी स्वागत किया।
कृषि के विषय पर अगस्त 2017 में नई दिल्ली के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC) में कृषि अनुसंधान मंच के समन्वय केंद्र की स्थापना को ब्रिक्स की महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है। केंद्र सरकार से ज्ञान साझा करने और नवीनतम अनुसंधान, प्रौद्योगिकी, नीति, नवाचार, विस्तार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण का समग्र अनुभव प्राप्त करने हेतु बहुपक्षीय लेनदेन को बढ़ावा देने की अपेक्षा है। इससे ब्रिक्स देशों के बीच जलवायु परिवर्तन, संसाधनों के सततशील उपयोग, नए कीटों, रोगाणुओं और आक्रामक पौधों के प्रबंधन, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य और खाद्य उत्पादों के उत्पादन के लिए मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने, अपव्यय रोकने और ज्ञान के आदान-प्रदान सहित विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।
ब्रिक्स संस्थागत तंत्रों का सृजन
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ब्रिक्स की सबसे ठोस उपलब्धि रही है संस्थागत तंत्रों की स्थापना। 2012 में हुए ब्रिक्स नेताओं के शिखर सम्मेलन में नियोजित लिए गए NDB और CRA 2015 में चालू हो गए। कई दौर की बातचीत और वित्त मंत्रियों की बैठकों के बाद जुलाई 2014 में ब्राजील के फोर्टालेज़ा में हुए ब्रिक्स नेताओं के छठे शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं ने 100-100 अरब डॉलर से ब्रिक्स NDB और CRA की स्थापना के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
NDB में निर्णयन प्रक्रिया को बैंक स्थापित करने वाले समझौते के अनुच्छेद 6 में परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि बैंक के समक्ष सभी मामलों में निर्णय डाले गए वोटों के साधारण बहुमत लिया जाएगा। अनुच्छेद 6 में लिखा है कि
“जब तक विशिष्ट रूप से अन्यथा व्यक्त नहीं किया गया हो, बैंक के समक्ष सभी मामलों में निर्णय डाले गए वोटों के साधारण बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। जहां जहां भी इस समझौते में योग्य बहुमत का प्रावधान किया गया है, उन मामलों में इसे सदस्यों के कुल मतदान का दो तिहाई सकारात्मक वोट समझा जाएगा। जहां जहां भी इस समझौते में विशेष बहुमत का प्रावधान है, उन मामलों में इसका अर्थ संस्थापक सदस्यों में से चार का वोट और साथ ही सदस्यों के कुल मतदान का दो तिहाई सकारात्मक वोट माना जाएगा।"
जहां तक CRA की बात है, निर्णयन को दो स्तरों पर परिभाषित किया गया है: गवर्निंग कौंसिल और स्थायी समिति। CRA संधि के अनुच्छेद 3 में प्रावधान है कि गवर्निंग कौंसिल के स्तर पर होने वाले निर्णय सर्वसम्मति से होंगे। इसकी जिम्मेवारियों में कौंसिल को पूल के आकार और इसके घटकों की समीक्षा और परिवर्तन करने और पहुंच सीमाओं, गुणकों, ब्याज दरों, परिपक्वता अवधियों, पूर्व शर्तों और स्वीकृतियों में परिवर्तन को मंज़ूर करने का अधिकार शामिल है। स्थायी समिति के स्तर पर समर्थन से जुड़े से अनुरोधों से संबंधित निर्णयों के लिए भारित मतदान प्रणाली है। अन्य निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाने होते हैं। भारित करने की प्रणाली अनुच्छेद 3 (e) में दी गई है, जिसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि जहां 5% मतदान शक्ति प्रतिभागियों में समान रूप से बंटी हुई है; शेष 95% का वितरण CRA के प्रति प्रत्येक प्रतिभागी की प्रतिबद्धता के परिमाण पर निर्भर है। हालांकि अनुच्छेद 3 में इस बात पर बल दिया गया है कि ‘[a] सैद्धांतिक तौर पर स्थायी समिति सभी मामलों पर आम सहमति बनाने की प्रयास करेगी।
शंघाई में स्थित मुख्यालय वाला NDB ब्रिक्स और अन्य उभरते और विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। हालाँकि अब तक स्वीकृत परियोजनाएँ गैर-सदस्य देशों में नहीं हैं और ब्रिक्स सदस्य देशों (तालिका बी) में ही केंद्रित हैं। इसके संचालन के तीन वर्षों में NDB के तहत परियोजनाओं के कार्यान्वयन में पर्याप्त प्रगति हुई देखी जा सकती है। 2016 तक बैंक का मुख्य केंद्र नवीकरणीय ऊर्जा रहा। लेकिन अब इसमें जल आपूर्ति, स्वच्छता, सिंचाई, कृषि और अन्य को शामिल कर विविधता आ गई है। 2016 तक NDB ने 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की 7 परियोजनाओं का अनुमोदन कर उनमें निवेश किया । इन सात में से छह परियोजनाएं अक्षय ऊर्जा से जुडी हुई थीं। 2017 में 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की छह परियोजनाओं को बोर्ड ने अनुमोदित किया था। इसकी स्थापना के बाद से 2017 के अंत तक कुल स्वीकृत राशि 3.4 अरब डॉलर थी, जिसमें 900 अरब अमेरिकी डॉलर की वह राशि भी थी, जिसकी समीक्षा की गई थी लेकिन जिसे लेकिन बोर्ड के विचाराधीन नहीं लाया गया था (तालिका बी)। 28-29 मई, 2018 को हुई NDB निदेशक मंडल (BoD) की 14वीं बैठक में NDB के सभी पाँच सदस्य देशों के 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण वाली छह परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी। इनमें पेट्रो ब्रास पर्यावरण सुरक्षा परियोजना (ब्राज़ील) (20 करोड़ अमेरिकी डॉलर), जलापूर्ति और सफाई प्रणाली परियोजना (रूस) (32 करोड़ अमेरिकी डॉलर), लघु ऐतिहासिक नगर विकास परियोजना (रूस) (22 करोड़ अमेरिकी डॉलर), बिहार ग्रामीण सड़क परियोजना (भारत) (35 करोड़ अमेरिकी डॉलर), चोंगिंग लघु नगर सततशील विकास परियोजना (चीन) (30 करोड़ अमेरिकी डॉलर), और डरबन कंटेनर टर्मिनल बर्थ पुनर्निर्माण परियोजना (दक्षिण अफ्रीका) (20 करोड़ अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल हैं।
NDB वैश्विक विकास और विकास के लिए स्थापित बहुपक्षीय और क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर सहयोग में भी काम कर रहा है। इस बैंक ने अन्य बहुपक्षीय और क्षेत्रीय बैंकों जैसे यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (EBRD), यूरोपीय निवेश बैंक (EIB), विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन (आईडीए) और अंतर्राष्ट्रीय वित्त सहयोग (IFC), एशियाई विकास बैंक (ADB) और एशियाई बुनियादी ढाँचा विकास बैंक (AIIB) के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं।
CRA की स्थापना अल्पकालिक तरलता दबाव झेलने को आसान बनाने, ब्रिक्स सहयोग को बढ़ावा देने, वैश्विक वित्तीय सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने और अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं का पूरक निर्मित करने के लिए की गई है। इसका लक्ष्य वास्तविक या संभावित भुगतान संकट की प्रतिक्रिया के तौर पर मुद्रा स्वैप के माध्यम से तरलता प्रदान करना है। CRA की स्थापना की संधि के अनुसार मुद्रा स्वैप तक पहुंच 'पक्षों' अर्थात ब्रिक्स के सदस्य देशों को अपने केंद्रीय बैंकों के माध्यम से उपलब्ध है। इसकी पूर्ति के लिए ब्रिक्स के केंद्रीय बैंकों ने CRA समग्र आर्थिक सूचना आदान प्रदान प्रणाली (SEMI) की स्थापना की है और CRA की अनुसंधान क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए और भी काम कर रहे हैं।
न्यू डेवलपमेंट बैंक का अफ्रीका क्षेत्रीय केंद्र
17 अगस्त, 2017 को शुरू हुए एनडीबी अफ्रीका क्षेत्रीय केंद्र (एआरसी) का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका के सततशील अवसंरचना विकास में योगदान देना और महाद्वीप के विकास के एजेंडे में उपयोगी भागीदार के रूप में कार्य करना है। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में न्यू डेवलपमेंट बैंक के एआरसी के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए अध्यक्ष के. वी. कामथ ने कहा,
“एनडीबी के पहले क्षेत्रीय कार्यालय एआरसी की स्थापना बैंक के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसके स्थापना समझौते के अनुच्छेदों में बैंक के संस्थापकों द्वारा की गई प्रतिबद्धता की प्राप्ति का सूचक है .... एआरसी अफ्रीका में एनडीबी का चेहरा होगा।“
एआरसी की प्रमुख भूमिकाओं में से एक होगी - भविष्य में देश के आर्थिक और सामाजिक-आर्थिक विकास की रणनीति के लिए अपनाये गए खाके के अनुसार दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय विकास नीति योजना के अनुरूप टिकाऊ बुनियादी ढाँचे और सततशील विकास परियोजनाओं की पहचान करना। इन परियोजनाओं को एनडीबी से वित्तीय सहायता मिलेगी। इस संदर्भ में एनडीबी के सदस्यों ने अगले अठारह महीनों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए दक्षिण अफ्रीका को 1.5 अरब डॉलर की राशि उधार देने पर सहमति व्यक्त की है, और एआरसी को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि यह राशि परियोजना के लिए वास्तविक तौर पर उधार दी जाए।
भारत और ब्रिक्स
समूह का सदस्य होने के नाते ब्रिक्स में भारत की भूमिका, विशेष रूप से संस्था निर्माण में, महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स के बैंक NDB की स्थापना का प्रस्ताव मार्च 2012 में नई दिल्ली में भारत द्वारा 4वें शिखर सम्मेलन के दौरान दिया गया था। इसके पीछे मुख्य विचार था मुख्य रूप से ब्रिक्स देशों द्वारा वित्तपोषित और प्रबंधित किये जाने वाले और ब्रिक्स के नेतृत्व वाली दक्षिण-दक्षिण विकास बैंक की स्थापना करना, जिसके ज़रिये अधिशेष को विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे और सततशील विकास परियोजनाओं में निवेश के लिए पुन: उपयोग किया जा सके। जुलाई 2015 में 7वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र में भारत ने ब्रिक्स कृषि अनुसंधान केंद्र के निर्माण का प्रस्ताव रखा। अंतत: कृषि अनुसंधान केंद्र का समन्वय केंद्र अगस्त 2017 में NASC, नई दिल्ली में शुरू किया गया।
वर्तमान क्रेडिट रेटिंग बाज़ार, जिसमें एस एंड पी, मूडीज़ और फिच सहित पश्चिमी रेटिंग एजेंसियों का वर्चस्व है और जिनका संप्रभु रेटिंग बाजार के 90 प्रतिशत से अधिक कारोबार पर कब्ज़ा है, में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष बाधाओं को हल करने के उद्देश्य से भारत ब्रिक्स क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के निर्माण पर जोर दे रहा है।
अब तक ब्रिक्स निर्यात ऋण और बीमा एजेंसियों - ब्राजीली गारंटी एजेंसी, OJSC (रूसी निर्यात ऋण और निवेश बीमा एजेंसी) चीन निर्यात और क्रेडिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, पीआर चाइना (SINOSURE), एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, इंडिया (ECGC) और एक्सपोर्ट क्रेडिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ साउथ अफ्रीका लिमिटेड, साउथ अफ्रीका (ECIC) - के साथ जुलाई 2014 में सहयोग ज्ञापन (MoC) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इन एजेंसियों ने परियोजनाओं, परामर्श और सूचना के आदान-प्रदान में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की है।
इसके अतिरिक्त भारत ने ब्रिक्स की कई बैठकें और अन्य ब्रिक्स-संबंधित कार्यक्रम आयोजित करने में पहल की है और इस तरह से इन प्रक्रियाओं को नियमित बनाने में मदद की है। इसके बाद हर साल राष्ट्राध्यक्ष सम्मेलन की मेज़बानी करने वाले देशों ने इन बैठकों और कार्यक्रमों का आयोजन किया है। उदाहरणतय भारत ने जून 2009 में येकातेरिनबर्ग (रूस) में आयोजित पहले ब्रिक शिखर सम्मेलन से पहले मई 2009 में नई दिल्ली में पहली ब्रिक्स अकादमिक फोरम की बैठक की मेज़बानी की थी। ये बैठकें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की तैयारी से जुडी बैठकों की भूमिका निभाती हैं और इनमें जन्म लेने वाले विचार और सिफारिशें शिखर सम्मेलन के एजेंडे का हिस्सा बनती हैं। 2010 के शिखर सम्मेलन के बाद से ये बैठकें हर साल राष्ट्राध्यक्षों की बैठक से पहले नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने वाले देश द्वारा आयोजित की जाती हैं।
ब्रिक्स के अंदर सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत ने जुलाई 2014 में ब्राजील में हुए 6वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे, जिसमें एक आभासी ब्रिक्स विश्वविद्यालय की स्थापना भी शामिल रहा।
ब्रिक्स युवा वैज्ञानिक मंच के ढांचे के तहत पहला ब्रिक्स युवा वैज्ञानिक कॉन्क्लेव भारत में सितंबर, 2016 में आयोजित किया गया। ब्रिक्स व्यापार परिषद, ऊफ़ा, 2015 में भारत द्वारा प्रस्तावित पहला ब्रिक्स व्यापार मेला और प्रदर्शनी अक्टूबर 2016 में आयोजित की गई, जिसमें अत्याधुनिक तकनीकों और औद्योगिक विकास में हुई नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित किया गया। इंडिया ने 9 अप्रैल, 2017 को हुई ब्रिक्स विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचालित उद्यमिता और नवाचार भागीदारी की पहली बैठक के समन्वयक की भूमिका निभाई।
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चर्चा में क्यों?
- हाल ही में भारत ने ब्रिक्स के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर की बैठक की मेजबानी की है।
प्रमुख बिन्दु
- भारत ने 6 अप्रैल 2021 को ब्रिक्स वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर की पहली बैठक की वर्चुअल मेजबानी की है।
- उक्त बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांता दास ने संयुक्त रूप से की है। इसके अतिरिक्त, इस बैठक में ब्रिक्स देशों के वित्त मंत्री और उनके केंद्रीय बैंकों के गवर्नर शामिल थे।
- 2021 में भारत की अध्यक्षता में ब्रिक्स वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों की यह पहली बैठक है।
- बैठक के दौरान ब्रिक्स के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों गवर्नरों ने 2021 के लिए भारत द्वारा निर्धारित वित्तीय सहयोग एजेंडे पर चर्चा की है। इसके तहत वैश्विक आर्थिक आउटलुक और कोविड-19 महामारी का असर, न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) की गतिविधियां, सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग और डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग, सीमा शुल्क से संबंधित मुद्दों पर सहयोग, आईएमएफ में सुधार, एसएमई के लिए फिनटेक और वित्तीय समावेशन, ब्रिक्स रैपिड सूचना सुरक्षा चैनल और ब्रिक्स बॉन्ड फंड पर चर्चा की गई है।
- उल्लेखनीय है कि 2021 में ब्रिक्स अध्यक्ष के रूप में भारत का जोर ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग बढ़ाने, उसमें निरंतरता लाने, संबंधों को मजबूत करने और आम सहमति बनाने पर है।
ब्रिक्स (BRICS) के बारे में
- ब्रिक्स देशों की कल्पना वर्ष 2001 में सर्वप्रथम गोल्डमैन सैक (Goldman Sachs) के अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने अपने शोधपत्र ‘बिल्डिंग बेटर ग्लोबल इकोनॉमिक ब्रिक्स’ में किया था। इस कल्पना में ब्राजील, भारत और चीन शामिल थे।
- ब्रिक्स दुनिया की पाँच सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं - ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से मिलकर बना एक समूह है। दरअसल ब्रिक्स इन पांचों देशों के नाम के पहले अक्षर B, R, I, C, S के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक संक्षिप्त शब्द है।
- इसकी औपचारिक स्थापना जुलाई 2006 में रूस के सेंट्स पीटर्सबर्ग में जी-8 देशों के सम्मेलन के अवसर पर रूस, भारत और चीन के नेताओं की बैठक के बाद हुई। बाद में, सितंबर 2006 में न्यूयॉर्क में UNGA की एक बैठक के (बैठक से इतर) अवसर पर BRIC देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई और इसी में BRIC की औपचारिक शुरुआत हुई।
- पहले ब्रिक सम्मेलन का आयोजन 16 जून, 2009 को रूस के येकतेरिनबर्ग में हुआ था। दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने का न्यौता दिया गया और वर्ष 2011 में चीन के सान्या में आयोजित ब्रिक्स (BRIC) के तीसरे सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका शामिल हुआ और यहीं से ब्रिक्स (BRICS) देशों के बहुपक्षीय संबंधों की शुरूआत हुई।
भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व
- वैश्विक परिदृश्य में अमेरिका, चीन और रूस एक दूसरे के लिये न केवल आर्थिक प्रतिद्वन्दी हैं बल्कि वैचारिक रूप से भी इनमें काफी भिन्नता है। वैश्विक बाजार में इन तीनों देशों की पकड़ बहुत मजबूत है। हाल ही में अमेरिका और रूस के बढ़ते विवाद के कारण कई तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं। अतः भारत इन जटिल संबंधों को सुलझाने के लिए एक मंच के रूप में ब्रिक्स का उपयोग कर सकता है।
- अमेरिका ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसीरीज थ्रू सैक्शन एक्ट’ का हवाला देते हुए, भारत को रूस से एस-400 मिसाइल न खरीदने का दबाव बनाता है अतः अमेरिकी दबाव के प्रतिरोध में भारत ब्रिक्स के मंच का उपयोग कर सकता है।
- ईरान से कच्चे तेल की खरीद ना करने के अमेरिकी दबाव के अलावा भारत तथा चीन पर प्रतिवर्ष बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के उल्लंघन के अमेरिका के आरोपों के विरोध में भारत स्वयं को कूटनीतिक एवं आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये ब्रिक्स देशों की सहायता प्राप्त कर सकता है।
- वैश्विक भू-राजनीतिक संबंधों के माध्यम से भारत चीन और रूस के गठबंधन को ना केवल संतुलित कर सकता है बल्कि इसके जरिए वह अमेरिकी दबाव को भी दूर कर सकता है।
- भारत को अपने सेवा क्षेत्र के लिये जिस प्रकार के बाजार की आवश्यकता है उसके लिए ब्रिक्स समूह बेहतर प्लेटफार्म है।
- ब्रिक्स के जरिए भारत वैश्विक वित्तीय और वाणिज्यिक संस्थानों में सुधार हेतु दबाव डाल सकता है जिससे वैश्विक वित्तीय स्थिरता और वित्तीय नियमों का पूरे विश्व में सुगम परिचालन हो सके।
- भारत जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद इत्यादि की दिशा में एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ उचित कार्रवाई की दिशा में ब्रिक्स एक उचित मंच साबित हो सकता है।
- गरीबी और भुखमरी को समाप्त कर असमानता को दूर करने में ब्रिक्स का मंच भारत के लिए उपयोगी हो सकता है।
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