Saturday, May 22, 2021

विषय: कोविड-19 का शहरी और ग्रामीण गरीबों पर प्रभाव

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर 

Covid -19 का शहरी और ग्रामीण गरीबों का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

  • हंगर वॉच (Hunger Watch) द्वारा संकलित रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने भारत में शहरी गरीबों को ग्रामीण समकक्षों की तुलना में अधिक भुखमरी में धकेल दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो COVID-19 ने भारत के शहरी गरीबों को गांवों की तुलना में अधिक प्रभावित किया है।

प्रमुख बिन्दु

  • कोविड 19 संकट से उपजे हालात के बाद 11 राज्यों में 3,994 परिवारों के साथ साक्षात्कार के आधार पर डेटा अक्टूबर 2020 में एकत्र किया गया था और समान मापदंडों पर प्री-लॉकडाउन स्तरों के साथ उसकी तुलना की गई थी।
  • हंगर वॉच के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से ग्रामीण निवासियों का एक बड़ा वर्ग महामारी से प्रेरित आर्थिक संकट को खत्म कर पाया, किन्तु शहरी गरीबों तक ऐसे राशन की पहुँच बहुत निम्न थी।
  • शहरी गरीबों के आय में आधे या एक चौथाई की कमी आई जबकि ग्रामीण निवासियों के लिए यह एक तिहाई से थोड़ा अधिक था। शहरी गरीबों के लिए अनाज और दालों की खपत आवश्यकता से कम से कम 12 प्रतिशत कम थी। इसी प्रकार शहरी उत्तरदाताओं में पोषण गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट देखी गयी, क्योंकि आर्थिक बंदी के दौरान उनके पास पौष्टिक भोजन प्राप्त करने के लिए पैसे नहीं थे।
  • लगभग 54 प्रतिशत शहरी उत्तरदाताओं ने भोजन के लिए पैसे उधार लिए जबकि 38 प्रतिशत ग्रामीण उत्तरदाताओं ने भोजन के लिए पैसे उधार लिए। कुछ 45 प्रतिशत ग्रामीण उत्तरदाताओं को अक्टूबर 2020 में भोजन छोड़ना पड़ा जबकि लगभग दो-तिहाई शहरी उत्तरदाताओं को एक ही महीने में ऐसा करना पड़ा।
  • इसमें कहा गया है कि शहरी गरीबों द्वारा अनुभव किए गए बड़े झटके को देखते हुए, यह उम्मीद की गई थी कि केंद्रीय बजट में शहरी रोजगार कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी। लेकिन वैसा नहीं हुआ।

राशन कार्ड व सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं से जुड़ी समस्याएँ

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में भी ग्रामीण गरीबों के बीच अपेक्षाकृत बेहतर कवरेज था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पीडीएस राशन की बेहतर पहुंच थी। इसके विपरीत शहरी क्षेत्रों में रह रहे गरीब परिवारों के एक बड़े हिस्से के पास राशन कार्ड नहीं है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में सब्सिडी वाले भोजन और रोजगार गारंटी के प्रावधान की योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

पोषण से जुड़ी चिंताएँ

  • भारत का ऽाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2018-19 (291.1 मिलियन टन) की तुलना में वर्ष 2019-20 (296.65 मिलियन टन) में 4% अधिक था, फिर भी भुखमरी की स्थिति पहले से व्यापक हो गई है और कुछ लोगों को तो पूरे दिन में आवश्यकता से कम भोजन मिल रहा है।
  • इसके बावजूद, प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के साथ-साथ आत्मानिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में शुरू किए गए गरीब और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए प्रदान की गई अतिरित्तफ़ सहायता अक्टूबर 2020 में समाप्त हो गई।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े

  • हंगर वॉच रिपोर्ट के आँकड़े और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों को साथ मिलाकर देखा जाये तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों ने कुपोषण के परिणामों में या तो बढ़ोत्तरी या ठहराव दर्शाया है, जैसे कि चाइल्ड स्टंटिंग और वेस्टिंग (Wasting) का प्रचलन तथा महिलाओं एवं बच्चों में एनीमिया का उच्च स्तर।
  • एनएफएचएस सर्वेक्षण 2019 में COVID-19 या लॉकडाउन की शुरुआत से पहले आयोजित किया गया था।

हंगर वॉच

  • हंगर वॉच सामाजिक समूहों और आंदोलनों का एक संगठन है। यह मार्च 2020 में देशव्यापी तालाबंदी के मद्देनजर विभिन्न वंचित आबादी के बीच भूख, भोजन की पहुंच और आजीविका सुरक्षा की वास्तविक स्थिति के आवधिक अध्ययन के लिए कार्य कर रहा था।
X

No comments:

Post a Comment

Thanks for your feedback